हवाई यात्रा।
हवाई यात्रा इक ख़्वाब रहा, पैदल सफर तमाम रहा,, दौड़ता रहा बेसबब, मंजिल का न अंदाज रहा।।
आए मोड़ कई मगर, न मंजिल न पडाव रहा, व्यस्तता रही दौड़ की, कैसे तैसे का सवाल रहा।।
बात तो गुरब्बत की थी, अमीर को कहा, ख्याल रहा, वो करता बाते बड़ी बड़ी, गरीब को मलाल रहा।।
यह कायदे भी बे कायदे है, बस अमीर के ही फायदे है, वो चल भी रहा कैसे है, यह भी आखिर सवाल रहा।।
थक कर भी वह चलता गया, रोटी की ऐसी दौड थी, पांव बवाइयों से आजार थे, उसे भूख की ही फिक्र रही।।
इक रोटी छीन भूखा रहा, दूजा रोटी को तरसता रहा, उसे भूख इक हवस सी थी, यह भूख का स्वाद रहा।।
देता तसल्ली पेट को, अंगों से वह परेशान रहा, यह बात की थी हवाई सी, हवा से ही तो मलाल रहा।। =/= मौलिक रचनाकार संदीप शर्मा।।
Gunjan Kamal
28-Feb-2024 12:57 PM
शानदार
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Mohammed urooj khan
28-Feb-2024 12:33 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-Feb-2024 06:35 AM
बेहतरीन और उम्दा रचना
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